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बिहार में शिक्षा बिहार के कारनामे किसी छिपी नहीं है. इस बार भी नालंदा से बड़ी लापरवाही सामने आई है. शारीरिक शिक्षक धर्मेंद्र कुमार को साइंस की कॉपी चेक करने के लिए बोर्ड के द्वारा नियुक्ति पत्र थमा दिया गया. बात…और पढ़ें

शिक्षक को मिला नियुक्ति पत्र.
हाइलाइट्स
- शारीरिक शिक्षक को साइंस की कॉपी चेक करने का नियुक्ति पत्र मिला.
- संस्कृत शिक्षक को हिंदी की कॉपी जांचने का काम सौंपा गया.
- तकनीकी समस्याओं के कारण टीचर डायरेक्टरी अपडेट नहीं हो पाई.
नालंदा. इसे आप क्या कहेंगे, मानवीय भूल या फिर लापरवाही, जिसके कारण लाखों बच्चों का भविष्य खतरे में पड़ जाए? जिस बोर्ड के भरोसे आप अपने बच्चों को शिक्षा की डिग्री थमा रहे हैं वही बोर्ड आपके बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रहा है. यह मामला नालंदा का है, जहां जहां एक शारीरिक शिक्षक को बिहार बोर्ड की और से पूर्व में आयोजित मैट्रिक की परीक्षा में साइंस के पेपर की मूल्यांकन के लिए नियुक्त कर दिया है.
दरसअल, नालंदा के एकंगरसराय स्थित डीन प्लस टू स्कूल चम्हेडी के पीटी यानि शारीरिक शिक्षक धर्मेंद्र कुमार को साइंस की कॉपी चेक करने के लिए बोर्ड के द्वारा नियुक्ति पत्र थमा दिया गया. हालांकि शिक्षक ने पदभार ग्रहण नहीं किया और निर्धारित मूल्यांकन केंद्र पर पहुंचकर केंद्राधीक्षक को अपनी अस्वीकृति भी जाहिर कर दी. इसके बाद जिले में हड़कंप मच गया.
क्या कहता है नियम?
बिहार बोर्ड के द्वारा इसके लिए प्रावधान बनाए गए हैं. हालांकि बीपीएससी शिक्षकों की नियुक्ति से पहले जब शिक्षकों का आभाव था और कई विषयों के शिक्षकों की कमी थी, तो ऐसे में उस विषय से संबंधित पोस्ट ग्रेजुएशन कर चुके एवं विद्यालय में उक्त विषय का वर्ग संचालन का प्रभार सह रहे शिक्षकों को मूल्यांकन की अनुमति दी जाती थी. लेकिन, जब से बीपीएससी शिक्षकों की नियुक्ति हुई है. बोर्ड के पास अब शिक्षकों का आभाव नहीं है. ऐसे में सभी शारीरिक शिक्षकों को मूल्यांकन से दूर कर दिया गया है. इसका एक और पहलू है जो शिक्षा विभाग को विद्यालय से जोड़ता है. सभी उच्च विद्यालयों को आदेश है कि कॉपी मूल्यांकन से सम्बंधित जानकारी टीचर डायरेक्टरी के माध्यम से बोर्ड को सूचित किया जाए. इसकी जवाबदेही प्रधानाचार्य पर होती है.
प्रधानाचार्य तकनीकी समस्या का दे रहे हवाला
इस पूरे प्रकरण की जांच करने के लिए लोकल 18 की टीम विद्यालय परिसर पहुंची. यहां पहुंचने पर प्रधानाचार्य कक्ष में सवालों के घेरे से घिरे शारीरिक शिक्षक धर्मेंद्र कुमार और प्रधानाचार्य सुधा कुमारी से मुलाकात हुई. प्रधानाचार्या ने बताया कि पिछले साल तक टीचर डायरेक्टरी यही हुआ करती थी. इसके बाद इसे ठीक कराने के लिए हमनें कोशिश की, लेकिन विभाग के पोर्टल पर तकनीकी समस्याओं की वजह से यह अपडेट नहीं हो पाया. शिक्षक धर्मेंद्र कुमार का नाम वैसे ही रह गया और उन्हें इस बार भी नियुक्ति पत्र विभाग ने थमा दिया.
संस्कृत के शिक्षक जांच रहे हिंदी की कॉपी
इसी विद्यालय का एक और मामला है. जहां संस्कृत के शिक्षक को हिंदी की कॉपी की जांच के लिए दी गई है. ऐसे में प्रधानाचार्या सुधा कुमारी बताती हैं कि यहां के बीपीएससी TRE 02 के शिक्षकों का नाम टीचर डायरेक्टरी में नहीं जुड़ पाया है. यहां पहले कौशल किशोर प्रधानाचार्य हुआ करते थे. यू-डाइस और बाक़ी चीजें उन्हीं के नाम पर है. ऐसे में पूर्व प्राचार्य कौशल किशोर ही सबका नाम जुड़वाने साइबर कैफे गए थे, लेकिन उनसे काम नहीं हो पाया. शायद सर्वर प्रॉब्लम था. यहां तक कि मैं प्रधानाचार्या थी, लेकिन मेरा नाम भी नहीं जुड़ा. शारीरिक शिक्षक धर्मेंद्र कुमार कहते हैं कि बीते वर्ष वे मूल्यांकन में थे, जब शिक्षकों की कमी हुआ करती थी. लेकिन, इस वर्ष बोर्ड ने शारीरिक शिक्षकों को कॉपी मूल्यांकन से बाहर कर दिया है. ऐसे में इसकी जानकारी उन्हें पूर्व से थी. जब नियुक्ति पत्र मिला तो, उन्होंने कॉपी मूल्यांकन से अस्वीकृति दे दी और पदभार ग्रहण नहीं किया है.
शिक्षक या बोर्ड कौन है इस मामले का दोषी?
इस प्रकरण के उजागर होने से शिक्षकों के सम्मान के साथ जहां खिलवाड़ हो रहा है, वहीं बच्चों का भविष्य गर्त में है. ऐसी स्थिति में जिम्मेदारी किसकी बनती है, यह तो शिक्षा विभाग ही तय करेगा. लेकिन, सवाल यह है कि ऐसी स्थिति के लिए जिम्मेदार कौन है? क्या बोर्ड के पास टीचर डायरेक्टरी उपलब्ध नहीं रहता है, जिससे वो शिक्षकों के द्वारा पढ़ाए जा रहे विषय और उनके बारे में एहतियात जानकारी रखें? या फिर शिक्षक जो अपने ही विभाग को अपनी वस्तुस्थिति से अवगत ना करा सकें. हालांकि उड़ती खबर तो यह भी आ रही है कि एक शिक्षक को ही मैट्रिक और इंटर दोनों जगहों के कॉपियों के मूल्यांकन की जिम्मेदारी दी गई है. विभाग चाहे तो इस विषय की भी गंभीरता से जांच करा सकता है.
बच्चों पर इससे क्या पड़ेगा असर?
जरा सोचिए कि जब संस्कृत के शिक्षक से बच्चे हिंदी में सवाल पूछे और जब शारीरिक शिक्षक से साइंस का तो क्या जवाब योग्य हो सकता है? शायद बहुत हद तक नहीं. ऐसे में जब वही बच्चे पूरे मन के साथ पढ़ाई कर चुके हो और एग्जाम दे रहें हो और कॉपी मूल्यांकन का इंतजार कर रहे हो और जब रिजल्ट्स आए तो उस बच्चे के नंबर के साथ खिलवाड़ हो जाए. खैर, इससे बोर्ड को कहां असर पड़ता है. बिहार बोर्ड के कई कारनामें दुनियां देख चुकी है, शायद कुछ और कारनामें सामने आना बांक़ी है.
March 06, 2025, 15:41 IST
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